शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

BhagvatGita-02-03


मूल स्लोकः

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।

क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।




English translation by Swami Sivananda
2.3 Yield not to impotence, O Arjuna, son of Pritha. It does not befit thee. Cast off this mean weakness of the heart! Stand up, O scorcher of the foes!


English commentary by Swami Sivananda
2.3 क्लैब्यम् impotence, मा स्म गमः do not get, पार्थ O Partha, न not, एतत् this, त्वयि in thee, उपपद्यते is fitting, क्षुद्रम् mean, हृदयदौर्बल्यम् weakness of the heart, त्यक्त्वा having abandoned, उत्तिष्ठ stand up, परन्तप O scorcher of the foes.No commentary.



Hindi translation by Swami Ram Sukhdas
हे पृथानन्दन अर्जुन! इस नपुंसकताको मत प्राप्त हो; क्योंकि तुम्हारेमें यह उचित नहीं है। हे परंतप! हृदयकी इस तुच्छ दुर्बलताका त्याग करके युद्धके लिये खड़े हो जाओ ।।2.3।।


Hindi commentary by Swami Ramsukhdas
व्याख्या -- पार्थ (टिप्पणी प0 39.1) -- माता पृथा-(कुन्ती-) के सन्देशकी याद दिलाकर अर्जुनके अन्तःकरणमें क्षत्रियोचित वीरताका भाव जाग्रत् करनेके लिये भगवान् अर्जुनको पार्थ नामसे सम्बोधित करते हैं (टिप्पणी प0 39.2)। तात्पर्य है कि अपनेमें कायरता लाकर तुम्हें माताकी आज्ञाका उल्लंघन नहीं करना चाहिये।क्लैब्यं मा स्म गमः -- अर्जुन कायरताके कारण युद्ध करनेमें अधर्म और युद्ध न करनेमें धर्म मान रहे थे। अतः अर्जुनको चेतानेके लिये भगवान् कहते हैं कि युद्ध न करना धर्मकी बात नहीं है, यह तो नपुंसकता (हिजड़ापन) है। इसलिये तुम इस नपुंसकताको छोड़ दो।नैतत्त्वय्युपपद्यते -- तुम्हारेमें यह हिजड़ापन नहीं आना चाहिये था; क्योंकि तुम कुन्ती-जैसी वीर क्षत्राणी माताके पुत्र हो और स्वयं भी शूरवीर हो। तात्पर्य है कि जन्मसे और अपनी प्रकृतिसे भी यह नपुंसकता तुम्हारेमें सर्वथा अनुचित है।परंतप -- तुम स्वयं परंतप हो अर्थात् शत्रुओंको तपानेवाले, भगानेवाले हो, तो क्या तुम इस समय युद्धसे विमुख होकर अपने शत्रुओंको हर्षित करोगे?क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ -- यहाँ क्षुद्रम् पदके दो अर्थ होते हैं -- (1) यह हृदयकी दुर्बलता तुच्छताको प्राप्त करानेवाली है अर्थात् मुक्ति, स्वर्ग अथवा कीर्तिको देनेवाली नहीं है। अगर तुम इस तुच्छताका त्याग नहीं करोगे तो स्वयं तुच्छ हो जाओगे; और (2) यह हृदयकी दुर्बलता तुच्छ चीज है। तुम्हारे-जैसे शूरवीरके लिये ऐसी तुच्छ चीजका त्याग करना कोई कठिन काम नहीं है।तुम जो ऐसा मानते हो कि मैं धर्मात्मा हूँ और युद्धरूपी पाप नहीं करना चाहता, तो यह तुम्हारे हृदयकी दुर्बलता है, कमजोरी है। इसका त्याग करके तुम युद्धके लिये खड़े हो जाओ अर्थात् अपने प्राप्त कर्तव्यका पालन करो।यहाँ अर्जुनके सामने युद्धरूप कर्तव्य-कर्म है। इसलिये भगवान् कहते हैं कि ' उठो, खड़े हो जाओ और युद्धरूप कर्तव्यका पालन करो'। भगवान्के मनमें अर्जुनके कर्तव्यके विषयमें जरा-सा भी सन्देह नहीं है। वे जानते हैं कि सभी दृष्टियोंसे अर्जुनके लिये युद्ध करना ही कर्तव्य है। अतः अर्जुनकी थोथी युक्तियोंकी परवाह न करके उनको अपने कर्तव्यका पालन करनेके लिये चट आज्ञा देते हैं कि पूरी तैयारीके साथ युद्ध करनेके लिये खड़े हो जाओ।सम्बन्ध -- पहले अध्यायमें अर्जुनने युद्ध न करनेके विषयमें बहुत-सी युक्तियाँ (दलीलें) दी थीं। उन युक्तियोंका कुछ भी आदर न करके भगवान्ने एकाएक अर्जुनको कायरतारूप दोषके लिये जोरसे फटकारा और युद्धके लिये खड़े हो जानेकी आज्ञा दे दी। इस बातको लेकर अर्जुन भी अपनी युक्तियोंका समाधान न पाकर एकाएक उत्तेजित होकर बोल उठे -- ।।2.3।।


Sanskrit commentary by Sri Sankaracharya
2.3 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.



English translation by Swami Gambhirananda (on Sri Sankaracharya's Sanskrit Commentary)
2.3 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.



Hindi translation by Sri Harikrishandas Goenka (on Sri Sankaracharya's Sanskrit Commentary)
No such translation is available. Translation starts from 2.10 ।।2.3।।


Sanskrit commentary by Sri Ramanuja
संजय उवाच -- श्रीभगवानुवाच -- एवम् उपविष्टे पार्थे कुतः अयम् अस्थाने समुत्थितः शोक इति आक्षिप्य तम् इमं विषमस्थं शोकम् अविद्वत्सेवितं परलोकविरोधिनम् अकीर्तिकरम् अतिक्षुद्रं हृदयदौर्बल्यकृतं परित्यज्य युद्धाय उत्तिष्ठ इति श्रीभगवान् उवाच ।।2.3।।



English translation by Swami Adidevananda (on Sri Ramanuja's Sanskrit Commentary)
2.1 - 2.3 Sanjaya said --- Lord said -- When Arjuna thus sat, the Lord, opposing his action, said: 'What is the reason for your misplaced grief? Arise for battle, abandoning this grief, which has arisen in a critical situation, which can come only in men of wrong understanding, which is an obstacle for reaching heaven, which does not confer fame on you, which is very mean, and which is caused by faint-heartedness.


Sanskrit commentary by Sri Vallabhacharya
मोहमधुहन्ता वाक्यं वक्ष्यमाणमुवाच -- कुतस्त्वेति। विषमे सङ्कटे हे अर्जुन शुद्धस्वरूप! कुत इदं च कश्मलं समुपस्थितम्? ।।2.2 -- 2.3।।


Sanskrit commentary by Sri Madhusudan Saraswati
ननु बन्धुसेनावेक्षणजातेनाधैर्येण धनुरपि धारयितुमशक्नुवता मया किं कर्तुं शक्यमित्यत आह -- क्लैब्यं क्लीबभावमधैर्यमोजस्तेजआदिभङ्गरूपं मा स्म गमः मा गाः। हे पार्थ पृथातनय, पृथया देवप्रसादलब्धे तत्तनयमात्रे वीर्यातिशयस्य प्रसिद्धत्वात्पृथातनयत्वेन क्लैब्यायोग्य इत्यर्थः। अर्जुनत्वेनापि तदयोग्यत्वमाह -- 'नैतदिति'। त्वय्यर्जुने साक्षान्महेश्वरेणापि सह कृताहवे प्रख्यातमहाप्रभावे नोपपद्यते न युज्यते। एतत्क्लैब्यमित्यसाधारण्येन तदयोग्यत्वनिर्देशः। ननु'नच शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः' इति पूर्वमेव मयोक्तभित्याशङ्क्याह -- 'क्षुद्रमिति'। हृदयदौर्बल्यं मनसो भ्रमणादिरूपमधैर्यं क्षुद्रत्वकारणत्वात्क्षुद्रं सुनिरसनं वा त्यक्त्वा विवेकेनापनीय उत्तिष्ठ युद्धाय सज्जो भव। हे परंतप परं शत्रुं तापयतीति तथा संबोध्यते। हेतुगर्भम् ।।2.3।।


Sanskrit commentary by Sri Madhvacharya
Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11. ।।2.3।।

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