मूल स्लोकः
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः।।1.23।।
English translation by Swami Sivananda
1.23. For I desire to observe those who are assembled here to fight,wishing to please in battle the evil-minded Duryodhana (the son of Dhritarashtra).
English commentary by Swami Sivananda
1.23 योत्स्यमानान् with the object of fighting, अवेक्षे observe, अहम् I, ये who, एते those, अत्र here (in this Kurukshetra), समागताः assembled, धार्तराष्ट्रस्य of the son of Dhritarashtra, दुर्बुद्धेः of the evil-minded, युद्धे in battle, प्रियचिकीर्षवः wishing to please.No Commentary.
Hindi translation by Swami Ram Sukhdas
दुष्टबुद्धि दुर्योधनका युद्धमें प्रिय करनेकी इच्छावाले जो ये राजालोग इस सेनामें आये हुए हैं, युद्ध करनेको उतावले हुए इन सबको मैं देख लूँ ।।1.23।।
Hindi commentary by Swami Ramsukhdas
व्याख्या -- धार्तराष्ट्र (टिप्पणी प0 18) दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः -- यहाँ दुर्योधनको दुष्टबुद्धि कहकर अर्जुन यह बताना चाहते हैं कि इस दुर्योधनने हमारा नाश करनेके लिये आजतक कई तरहके षड्यन्त्र रचे हैं। हमें अपमानित करनेके लिये कई तरहके उद्योग किये हैं। नियमके अनुसार और न्यायपूर्वक हम आधे राज्यके अधिकारी हैं, पर उसको भी यह हड़पना चाहता है, देना नहीं चाहता। ऐसी तो इसकी दुष्टबुद्धि है; और यहाँ आये हुए राजालोग युद्धमें इसका प्रिय करना चाहते हैं! वास्तवमें तो मित्रोंका यह कर्तव्य होता है कि वे ऐसा काम करें, ऐसी बात बतायें, जिससे अपने मित्रका लोक-परलोकमें हित हो। परन्तु ये राजालोग दुर्योधनकी दुष्टबुद्धिको शुद्ध न करके उलटे उसको बढ़ाना चाहते हैं और दुर्योधनसे युद्ध कराकर, युद्धमें उसकी सहायता करके उसका पतन ही करना चाहते हैं। तात्पर्य है कि दुर्योधनका हित किस बातमें है; उसको राज्य भी किस बातसे मिलेगा और उसका परलोक भी किस बातसे सुधरेगा -- इन बातोंका वे विचार ही नहीं कर रहे हैं। अगर ये राजालोग उसको यह सलाह देते कि भाई, कम-से-कम आधा राज्य तुम रखो और पाण्डवोंका आधा राज्य पाण्डवोंको दे दो तो इससे दुर्योधनका आधा राज्य भी रहता और उसका परलोक भी सुधरता।योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः -- इन युद्धके लिये उतावले होनेवालोंको जरा देख तो लूँ। इन्होंने अधर्मका, अन्यायका पक्ष लिया है, इसलिये ये हमारे सामने टिक नहीं सकेंगे, नष्ट हो जायँगे।योत्स्यमानान् कहनेका तात्पर्य है कि इनके मनमें युद्धकी ज्यादा आ रही है; अतः देखूँ तो सही कि ये हैं कौन?सम्बन्ध -- अर्जुनके ऐसा कहनेपर भगवान्ने क्या किया -- इसको सञ्जय आगेके दो श्लोकोंमें कहते हैं ।।1.23।।
Sanskrit commentary by Sri Sankaracharya
1.23 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
English translation by Swami Gambhirananda (on Sri Sankaracharya's Sanskrit Commentary)
1.23 Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.10.
Hindi translation by Sri Harikrishandas Goenka (on Sri Sankaracharya's Sanskrit Commentary)
Sri Sankaracharya did not comment on this sloka. ।।1.23।।
Sanskrit commentary by Sri Ramanuja
अर्जुन उवाच -- संजय उवाच -- स च तेन चोदितः तत्क्षणाद् एव भीष्मद्रोणादीनां सर्वेषाम् एव महीक्षितां पश्यतां यथाचोदितम् अकरोत्। ईदृशी भवदीयानां विजयस्थितिः इति च अवोचत् ।।1.23।।
English translation by Swami Adidevananda (on Sri Ramanuja's Sanskrit Commentary)
1.20 - 1.25 Arjuna said --- Sanjaya said -- Thus, directed by him, Sri Krsna did immediately as He had been directed, while Bhisma, Drona and others and all the kings were looking on. Such is the prospect of victory for your men.
Sanskrit commentary by Sri Vallabhacharya
'अथ व्यवस्थितान्' इत्यारभ्य'भीष्मद्रोणप्रमुखतः' 1-25 इत्यन्तम्। अथ युयुत्सूनवस्थितान् धार्तराष्ट्रान् वीक्ष्य कपिध्वजः स्वाश्रितजनपोषकं स्वसारथ्ये स्थितं हृषीकेशं जगाद -- यावदेतान् निरीक्षेऽहं तावत् उभयोः सेनयोर्मध्ये मम रथं स्थापयेति ।।1.20 -- 1.23।।
Sanskrit commentary by Sri Madhusudan Saraswati
ननु बन्धव एव एते परस्परं संधिं कारयिष्यन्तीति कुतो युद्धमित्याशङ्क्याह -- य एते भीष्मद्रोणादयो धार्तराष्ट्रस्य दुर्योधनस्य दुर्बुद्धेः स्वरक्षणोपायमजानतः प्रियचिकीर्षवो युद्धे नतु दुर्बुद्ध्यपनयनादौ तान् योत्स्यमानानहमवेक्षे उपलभे नतु सन्धिकामान्। अतो युद्धाय तत्प्रतियोग्यवलोकनमुचितमेवेति भावः ।।1.23।।
Sanskrit commentary by Sri Madhvacharya
Sri Madhvacharya did not comment on this sloka. The commentary starts from 2.11. ।।1.23।।
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